ममता -02-Dec-2022
कविता- ममता
घनी घनी अति है भरी, मां ममता की छांव।
शीतल तो शीतल भली, जीवन भर की गांव।।
ममता तुझमें मां भरी,तू ममता की खान।
तेरी ममता के तले,पले बढ़े मुझ जान।।
बिन ममता के मां कौन, मां की यह पहचान।
ममता से ही मां बनी, सबसे बड़ी महान।।
ममता मां में ही मिले, बह सरिता सी धार।
शीतल कर मन में भरे, अपना प्यार दुलार।।
ममता शीतल छांव है, ममता गुण का खान।
ममता बिन मन न भरे, हो कोई इंसान।।
बिन ममता तन मन सदा,सूखा पेड़ समान।
हरा भरा ना खुद रहे,न पशु पक्षी इंसान।।
ममता बांटो प्यार से,अपना हो या गैर।
ममता तो एक छांव है,सबका करती खैर।।
रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी
Gunjan Kamal
03-Dec-2022 10:26 AM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 🙏🏻🙏🏻
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Rajeev kumar jha
02-Dec-2022 09:44 PM
बहुत खूब
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